कोर्ट मैरिज करने के समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए जाने इस पूरी खबर में

कोर्ट मैरिज कैसे होती है- पूरी जानकारी !

कोर्ट मैरिज कैसे होती है---
 अब उन प्रेमी युगलो को कोई परेशानी नही होगी,जोकि लव मैरिज के लिए अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन करवाना चाहते है, क्योंकि अब परिवार के सदस्य की मौजूदगी के प्रावधान को खत्म कर दिया जाएगा।

कोर्ट मैरिज सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त मैरिज है। कोर्ट मैरिज संपन्न करने की प्रक्रिया पूरे भारत में एक समान ही है। इस अधिनियम द्वारा एक या अलग अलग धर्मों के स्त्री पुरुष भी, रस्मों रिवाजों वाली मैरिज के बदले कोर्ट मैरिज कर सकते है और यह शादी सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त होती है।अपनी जाति और धर्म से अलग जाति और धर्म का जीवन साथी चुनने के लिए प्यार की तरफ कदम बढ़ा रहे प्रेमी युगलों के लिए अब एक नया प्रावधान किया जाएगा ।

ऐसे प्रेमी युगल स्पेशल मैरिज एक्ट के अंतर्गत तुरंत कोर्ट मैरिज कर पाएंगे।अब उन्हें 30 दिन के नोटिस तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा।पहले यह प्रावधान था कि अपनी जाति और धर्म के बाहर शादी करने वाले प्रेमी युगल के आवेदन करने पर 30 दिन का नोटिस दिया जाता था।  यह नोटिस बाल विवाह और जबरदस्ती शादी को रोकने के उद्देश्य से दिया जाता था।  परंतु यह अवधि प्रेमी युगल के लिए खतरनाक साबित होने लगी।  घरवालो से बचने के लिए उन्हें एक महीने तक इधर उधर भागना पड़ता था। इस अवधि के दौरान घरवाले भागे हुए जोड़े का पता लगा लेती थी और उन्हें मार भी देती थी जिससे ओनर किलिंग की समस्या बहुत अधिक बढ़ गयी।

ओनर किलिंग की समस्या बढ़ने के कारण  इस प्रावधान में फेर-बदल किया जाएगा।बिना नोटिस के कोर्ट मैरिज का संशोधन किया जाएगा ताकि प्रेमी युगल जल्दी शादी कर  सके और उन्हें ज्यादा भागना न पड़े। एक बार शादी हो जाने  के बाद घर वालो का गुस्सा भी खुद ब खुद धीरे धीरे कम हो जाता है जिससे ओनर किलिंग की समस्या भी खत्म हो जायेगी।  
इसके अलावा शादी का रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए अब प्रेमी युगल के लिए परिवार के लोगों की मौजूदगी जरूरी नहीं होगी। अब उन प्रेमी युगलो को कोई परेशानी नही होगी,जोकि लव मैरिज के लिए अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन करवाना चाहते है, क्योंकि अब परिवार के सदस्य की मौजूदगी के प्रावधान को खत्म कर दिया जाएगा।

कोर्ट मैरिज की शर्ते----

 कोर्ट मैरिज के लिये निम्नलिखित शर्तो का पालन करना अति आवश्यक है----

 कोई पूर्व विवाह न हो या पूर्व विवाह वाले जीवनसाथी से डिवोर्स हो चुका हो----
कोर्ट मैरिज करने के लिए सबसे पहली शर्त यही है कि कोई पूर्व विवाह मौजूद न हो,यदि कोई पूर्व विवाह हुआ भी हो तो उससे डिवोर्स के जरिये सम्बन्ध-विच्छेद हो चुका  हो।


उम्र--
कोर्ट मैरिज के लिए लड़के की उम्र 21 से अधिक और लड़की की उम्र 18 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।


कोर्ट मैरिज प्रक्रिया-----


कोर्ट मैरिज की सूचना या आवेदन---
कोर्ट मैरिज करने के लिए सबसे पहले जिले के विवाह अधिकारी को  आवेदन किया जाता है। कोर्ट मैरिज में सम्मिलित होने वाले पक्षों द्वारा यह लिखित सूचना दी जानी चाहिए।आवेदन करने वाले पक्षो में से कम से कम एक पक्ष का आवेदन की तारीख से एक महीने पहले तक शहर में निवास किया हो। यानि कि यदि लड़का और लड़की जयपुर में रहते हो और कलकत्ता में विवाह करना चाहते हैं तो उनमें से किसी एक को आवेदन  की तारीख से ३० दिन पहले कलकत्ता में निवास करना आवश्यक है।

इसमें आवेदन फार्म के साथ आयु और निवास के प्रमाण दस्तावेज भी होने चाहिए। इसके बाद जिले का विवाह अधिकारी जिसके सामने सूचना जारी की गयी थी या आवेदन किया गया था, वो ही सूचना को प्रकाशित करता है।
सूचना की एक कॉपी उस जिला  कार्यालय में प्रकाशित की जाती है जहाँ आवेदन किया गया था और दूसरी कॉपी उस जिला कार्यालय में प्रकाशित की जाती है जहाँ विवाह पक्ष स्थायी रूप से निवासित है ।



विवाह पर आपत्तियों के लिए 30 दिन का नोटिस--
इसके बाद विवाह अधिकारी द्वारा 30 दिन का नोटिस जारी किया जाता है ताकि यदि कोई पक्ष विवाह में आपत्ति प्रस्तुत करना चाहता है तो वह संबंधित जिले के विवाह अधिकारी के सामने अपनी आपत्ति प्रस्तुत कर  सकता है।  आपत्ति प्रस्तुत करने के ३० दिनों के भीतर ही अधिकारी द्वारा जांच पड़ताल करना आवश्यक है। यदि कोर्ट मैरिज में प्रस्तुत की गयी आपत्तियां वाजिब होती है तो विवाह सम्पन्न नहीं होगा। इसके अलावा यदि कोई पक्ष इन आपतियो पर अपील दर्ज करवाना चाहता है तो स्वीकार की गयी आपत्तियों पर स्थानीय जिला न्यायलय में अपनी अपील दर्ज कर सकता है।यह अपील आपत्ति स्वीकार होने की तारीख से 30 दिन के अंदर ही की जाती है।


कोर्ट मैरिज घोषणा पर हस्ताक्षर---
कोर्ट मैरिज के लिए लड़का ,लड़की और तीन गवाह के द्वारा विवाह अधिकारी की उपस्थिति में घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किये जाते है। इसके बाद विवाह अधिकारी भी घोषणा को प्रतिहस्ताक्षरित करता है।और इस तरह से कोर्ट मैरिज संपन्न हो जाती है। 

कोर्ट मैरिज की प्रक्रिया पूरे भारत में समान है। इसे संभव बनाकर विशेष विवाह अधिनियम, १९५४ के अंतर्गत शासित किया गया है। इस अधिनियम द्वारा विभिन्न धर्म के स्त्री पुरुष नागरिक समारोह में विवाह सम्पन्न कर सकते है। एक ही धर्म के स्त्री पुरुष भी, रस्मों रिवाजों के बदले कोर्ट मैरिज का चुनाव कर सकते है।
विवरण से पहले, आम तौर पर पूछे गए सवालों पर गौर करते है
क्या विवाह पंजीकरण ऑनलाइन किया जा सकता है? 
नहीं। विवाह पंजीकरण ऑनलाइन नहीं किया जा सकता। इसके लिए मैरिज अधिकारी के सामने आपको स्वयं उपस्थित होना जरूरी है। तभी विवाह पंजीकरण हो पायेगा।
कोर्ट मैरिज के लिए क्या माता पिता की मंजूरी अनिवार्य है?
नहीं। कोर्ट मैरिज के लिए माता पिता की मंजूरी जरूरी नहीं है। बशर्ते इन नियमों का पालन किया गया हो।
क्या मैं कोर्ट मैरिज फार्म डाउनलोड कर सकता हूँ?
आप यहाँ क्लिक कर के “विवाह की सूचना” और “वर वधु की घोषणा” के फार्म डाउनलोड कर सकते हैं।

कोर्ट मैरिज: शर्तें

अध्याय २, धारा ४, के अनुसार इस विवाह में शामिल होने ले लिए कुछ शर्तों का पालन करना ज़रूरी है।
कोई पूर्व विवाह न हो: विवाह में शामिल होने वाले दोनों पक्षों की पहली शादी से जुड़े पति या पत्नी जीवित न हो। साथ ही कोई पूर्व विवाह वैध न हो।
वैध सहमति: दोनों पक्ष वैध सहमति देने के लिए सक्षम होने चाहिए। अपने मन की बात कहकर दोनों पक्षों को स्वेच्छा से इस विवाह में शामिल होना चाहिए।
उम्र: पुरुष की आयु २१ वर्ष से ज्यादा तथा महिला की १८ वर्ष से ज्यादा होना ज़रूरी है।
प्रसव के लिए योग्य: दोनों पक्षों का संतान की उत्पत्ति के लिए शारीरिक रूप से योग्य होना जरूरी है।
निषिद्ध संबंध: अनुसूची १ के अनुसार, दोनों पक्षों का निषिद्ध संबंधो की सीमा से बाहर होना जरूरी है। हालांकि; किसी एक के धर्म की परंपराओं में इसकी अनुमति हो, तो यह विवाह मान्य होगा।

कोर्ट मैरिज प्रक्रिया – चरण १

प्रयोजित विवाह की सूचना/आवेदन
कोर्ट में विवाह करने के लिए सर्वप्रथम जिले के विवाह अधिकारी को सूचित किया जाना चाहिए।
सूचना किसके द्वारा दी जानी चाहिए?
विवाह में शामिल होने वाले पक्षों द्वारा लिखित सूचना दी जानी चाहिए।
सूचना किसे दी जानी चाहिए?
सूचना उस जिले के विवाह अधिकारी को दी जाएगी जिसमें कम से काम एक पक्ष ने सूचना की तारीख से एक महीने पहले तक शहर में निवास किया हो। उदाहरण के तौर पर, यदि पुरुष और महिला दिल्ली में हैं, और मुंबई में विवाह करना चाहते हैं तो उनमें से किसी एक को सूचना की तारीख से ३० दिन पहले मुंबई में निवास करना अनिवार्य है।
सूचना का स्वरूप क्या है?
सूचना का स्वरूप अनुसूची २ के अधिनियम के अनुसार होना चाहिए जिसके साथ आयु और निवास के प्रमाण दस्तावेज भी संलग्न होने चाहिए। नीचे पढ़ें या डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें।

कोर्ट मैरिज प्रक्रिया: चरण २

सूचना का प्रकाशन सूचना कौन प्रकाशित करता है?
जिले के विवाह अधिकारी जिसके सामने सूचना जारी की गयी थी, वो ही सूचना प्रकाशित करता है।
सूचना कहाँ प्रकाशित की जाती है?
सूचना की एक प्रति कार्यालय में एक विशिष्ट स्थान पर तथा एक प्रति उस जिला कार्यालय में जहाँ विवाह पक्ष स्थायी रूप से निवासित है (अगर कोई है), प्रकाशित की जाती है।

कोर्ट मैरिज प्रक्रिया: चरण ३

विवाह में आपत्तियाँ

आपत्ति कौन प्रस्तुत कर सकते हैं?
कोई भी, अर्थात अध्याय २, अधिनियम के अनुभाग ४ (ऊपर देखें) में सूचीबद्ध आधारों पर कोई भी व्यक्ति विवाह में आपत्ति प्रस्तुत कर सकता है। यदि प्रस्तुत की गयी आपत्तियों का ऊपर दिए गए तत्वों से मेल जोल कम हो तो उसका परिणाम नहीं होगा। हालांकि, ज्यादातर मामलों में, विवाह अधिकारी को आपत्ति की जांच करना जरूरी है।
आपत्ति कहाँ प्रस्तुत की जाती है?
संबंधित जिले के विवाह अधिकारी के सामने आपत्ति प्रस्तुत की जाती है।
आपत्ति के आधार क्या है?
ऊपर दी गयी शर्तें तथा अधिनियम के अध्याय २, अनुभाग ४ में दी गयी सूची आपत्ति के आधार है।
यदि आपत्ति (याँ) स्वीकार हो तो उसके परिणाम क्या है?
आपत्ति प्रस्तुति के ३० दिनों के भीतर विवाह अधिकारी को जांच पड़ताल करना जरूरी है। यदि प्रस्तुत आपत्तियों को सही पाया गया, तो विवाह सम्पन्न नहीं होगा।
स्वीकार की गयी आपत्तियों पर क्या उपाय है?
स्वीकार की गयी आपत्तियों पर कोई भी पक्ष अपील दर्ज कर सकता है।
अपील किसके पास दर्ज की जा सकती है?
अपील आपके स्थानीय जिला न्यायलय में विवाह अधिकारी के अधिकार क्षेत्र में दर्ज की जा सकती है|
अपील कब दर्ज की जा सकती है?
आपात्ति स्वीकार होने के ३० दिन के भीतर अपील दर्ज की जा सकती है।

कोर्ट मैरिज प्रक्रिया: चरण ४

घोषणा पर हस्ताक्षर
घोषणा पर कौन हस्ताक्षर करता है?
दोनों पक्ष और तीन गवाह (विवाह अधिकारी की उपस्थिति में) घोषणा पर हस्ताक्षर करते है। विवाह अधिकारी भी घोषणा को प्रतिहस्ताक्षरित करता है।
घोषणा का लेख और प्रारूप क्या है?
घोषणा का प्रारूप अधिनियम की अनुसूची III में प्रदान किया गया है। प्रारूप नीचे पढ़े या डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें।

कोर्ट मैरिज प्रक्रिया: चरण ५

विवाह का स्थान
विवाह का स्थान: विवाह अधिकारी का कार्यालय या उचित दूरी के भीतर किसी जगह पर विवाह का स्थान हो सकता है।
विवाह का फार्म: विवाह पक्ष का चुना कोई भी फॉर्म स्वीकार किया जा सकता है लेकिन विवाह अधिकारी की उपस्थिति में वर और वधु को ये शब्द कहना जरूरी है।

कोर्ट मैरिज हाई कोर्ट प्रोटेक्शन के साथ

यदि एक पुरुष/लड़का और एक स्त्री/लड़की दोनों अपने अपने स्वयं के मर्जी से एक दूसरे के साथ विवाह करना चाहते हैं परन्तु दोनों या किसी एक के परिवार इस विवाह के विरुद्ध है तब इस स्थिति में माननीय हाई कोर्ट से प्रोटेक्शन आर्डर लेना सबसे बेहतर तरीका होता है क्यों कि इस तरह के मामलो में यह सामान्य रूप से देखा जा रहा है कि जहाँ एक स्त्री/ लड़की अपने परिवार के इच्छा के विरुद्ध कोर्ट मैरिज या आर्य समाज मैरिज करती है तो उसके परिवारीजन धारा 366 भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ. आई. आर.) लड़के के विरुद्ध दर्ज कराते हैं जो एक संगीन अपराध की कोटि के मामले में आता है और कोई भी मैरिज सर्टिफिकेट या कोर्ट मैरिज सर्टिफिकेट इस बात का निर्णायक सबूत हर स्थिति  में नहीं माने जाते हैं कि लड़की ने अपनी स्वयं की मर्जी से और बिना किसी दबाव के विवाह या कोर्ट मैरिज आदि किया है अतः केवल और केवल मैरिज सर्टिफिकेट या कोर्ट मैरिज सर्टिफिकेट के आधार पर हर स्थिति में यह सम्भव नहीं कि प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ. आई. आर.) दर्ज होने से रोका जा सके जब तक कि आप के पास माननीय हाई कोर्ट का प्रोटेक्शन आर्डर ना हो।

क्या होता है प्रोटेक्शन आर्डर ?

भारतीय संविधान १९५० के द्वारा दिए गए फंडामेंटल राइट के अनुसार कोई दो ब्यक्ति स्त्री और पुरुष बलिक होने पर दोनों अपने अपने स्वयं के मर्जी से एक दूसरे से विवाह कर सकते हैं और सभी के प्राण और दैहिक स्वतंत्रता की सुरक्षा की गारंटी आपका भारतीय संविधान प्रदत्त करता है।

                         
          Registartion Form Court Marriege
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Original Court marriege Certificate
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कब और कैसे मिलता है यह प्रोटेक्शन आर्डर ?

जब विवाह किये हुए या कोर्ट मैरिज किये हुए बालिक पति और पत्नी माननीय हाई कोर्ट के समक्ष एड्वोकेट के माध्यम से यह याचना करते हैं कि हम दोनों ने अपनी अपनी इच्छा से एक दूसरे से विवाह किया है जो फैमिली या सोसाइटी की इच्छा के विरुद्ध था और इस वजह से अब हमें सोसाइटी द्वारा, फैमिली द्वारा या पुलिस द्वारा या पुलिस के सपोर्ट से हम दोनों का उत्पीड़न किया जा रहा है या यह अधिसंभाब्य है कि उत्पीड़न किया जायेगा और यह भी अधिसंभाब्य है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट इस सन्दर्भ में दर्ज करा दी जाएगी जो विधि विरुद्ध होगा। माननीय हाई कोर्ट इस याचिका पर विचार करते हुए प्रोटेक्शन आर्डर पास कर सकती है जिसके तहत सरकार को तथा उस जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को एवंम सोसिटी और फैमिली को यह निर्देश देती है कि दोनों पति एवंम पत्नी स्वतंत्र रूप से एक दूसरे के साथ रह सकते हैं और किसी भी ब्यक्ति को यह राइट नहीं है कि इन दोनों पति पत्नी के शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन में कोई हस्तछेप करे और उस जिले के पुलिस अधीछक की यह ड्यूटी होगी कि किसी भी ब्यक्ति द्वारा उत्पीड़न नहीं किया जाना चाहिए चाहे वे दोनो के पेरेंट्स ही क्यों ना हो और ना ही कोई विधि विरुद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ. आई. आर.) दर्ज किया जायेगा ।

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